हम मरने के बाद कहां जाते हैं

Spiritual stories
4 min readApr 14, 2021

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यह निश्चित नहीं है कि कब और कैसे हमारी मौत आएगी लेकिन यह निश्चित है कि हमारी मौत जरूर आएगी. हम अंदाजा लगा सकते हैं, तर्क दे सकते हैं, किताबों में ढूंढने की कोशिश कर सकते हैं या अपनी कल्पना से कुछ भी सोच सकते हैं, लेकिन हम मौत के बारे में कुछ नहीं जानते. कुछ लोगों में मौत हैरत जगाती हैं और कुछ को डरावनी लगती है. कुछ लोग हर वक्त मौत के बारे में ही सोचते रहते हैं और कुछ को मौत का डर सताता रहता है. कुछ तो इसे स्वीकार ही नहीं करते. लेकिन मौत हम सब को जकड़ लेती है. अंतिम सच्चाई है, केवल यह निश्चित है, यहां आकर सब कुछ रुक जाता है.

हम रोते हुए इस दुनिया में आते हैं और रोते हुए चले जाते हैं, बीच का वक्त हम भ्रम में गुजार देते हैं. मौत के बारे में बात करना बुरा समझा जाता है और कई लोग यह मानते हैं कि इसकी बात करना भी इसे अपनी और बुलावा देना है यानी यह एक अपशकुन की तरह है. कुछ तो भोलेपन से, बिना सोच विचार किए, खुशी-खुशी यह सोच लेते हैं कि किसी ना किसी तरह मौत के बाद उनके लिए सब कुछ ठीक हो जाएगा.

दोनों तरह का नजरिया सच्चाई से भागना है. मृत्यु ना तो निराशाजनक है और ना ही रोमांचक, यह तो जिंदगी की सच्चाई है. दरअसल मृत्यु शब्द ही सही नहीं है क्योंकि मृत्यु तो होती ही नहीं. इस जीवन का अंत समय होने पर हम यह हाड मांस का चोला उतार कर इस दुनिया से चले जाते हैं.

मृत्यु किसी का इंतजार नहीं करती. एक कहावत है

मौत के लिए सभी बराबर हैं. यहां पर गरीबी सबसे ज्यादा धनवान है और धनवान भी उतना ही गरीब है जितना एक भिखारी. कर्ज लेने वाले की सूदखोरी खत्म हो जाती है और कर्ज देने वाला अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है, यहां अहंकारी अपनी मान मर्यादा की भेंट चढ़ा देता है, नेता अपना मान सम्मान और दुनिया दार ऐशोआराम का समर्पण कर देता है.

जब मौत दस्तक देती है तब इंसान ना कहीं भाग सकता है ना छुप सकता है.

जब मौत की घड़ी आ जाती है तो वह जवान या बूढ़े में बीमार या तंदुरुस्त में, अमीर या गरीब में और राजा या भिखारी में कोई भेदभाव नहीं करती. जब आखरी वक्त आता है तो कोई चेतावनी नहीं मिलती, ना ही किसी का लिहाज किया जाता है और हालात चाहे जैसे भी हो, वह घड़ी रुक नहीं सकती.. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता हम कौन हैं, कहां है, हमारी सेहत कैसी है और हमारे पास कितने धन संपत्ति है, मौत किसी को नहीं छोड़ती आखिर हममें से हर एक के नाम के साथ “स्वर्गीय” जुड़ जाता है. मौत हुई, जला दिया गया, हमेशा के लिए चले गए और हमेशा के लिए भुला दिए गए.

हम इतना तो जानते हैं कि इस धरती पर थोड़े समय के लिए मिली यह जिंदगी हमारी असली जिंदगी नहीं है. इस शरीर से परे भी कुछ ऐसा है जो इस शरीर के नष्ट होने पर भी बना रहता है. इच्छा तो यही होती है कि मनुष्य शरीर हमेशा के लिए बना रहे लेकिन आत्मा शरीर के बंधन से छूटने के लिए तड़पती है, क्योंकि असल में आत्मा तभी सचेत हो सकती है जब शरीर मृत्यु को प्राप्त करता है. ऐसा अनुभव हमें मेडिटेशन के दौरान और बाद में देह त्यागने के समय होता है.

एक शिष्या बार-बार अपने गुरु से यह सवाल पूछा करता था. “मौत के बाद क्या होता है? मरने के बाद हम कहां जाते हैं?

आखिर एक दिन गुरु ने उसे एक मोमबत्ती जलाने के लिए कहा, जब शिष्य ने मोमबत्ती जलाई तो गुरु ने फूंक मारकर उसे बुझा दिया और शिक्षा से पूछा. मोमबत्ती की ज्योति कहां गई?

शिष्य को कोई जवाब नहीं सूझा.

गुरु ने समझाया “इसी तरह है जब हमारी मौत होती है, हम भी गायब हो जाते हैं. मोमबत्ती की ज्योति कहां चली गई? वह अपने मूल में समा गई. अब यह अलग ज्योति के रूप में मौजूद नहीं है, इसकी अलग हस्ती नहीं रही.

इसी तरह हम भी मरने के बाद अपने असली मूल यानी परमात्मा में समा जाते हैं. आज तक इस रहस्य को कोई भी नहीं जान पाया. क्योंकि जो इस संसार से चले गए हैं वह कभी लौटकर नहीं आए बताने के लिए कि वह कहां चले गए. इस बात को ऐसे ही रहने देते हैं.

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धन्यवाद

Originally published at https://www.lifedefinition.online.

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